स्लम बच्चों में ज्ञान की ज्योति जगा रही कुल्लू की निशा, चार साल से जगा रहीं शिक्षा की अलख, पहली से दसवीं तक के 18 बच्चे कर रहे शिक्षा प्राप्त
गली मोहल्ले, बाजारों में रोजी रोटी की तलाश में घूमते नन्हे बच्चों की जिंदगी बदलने का संकल्प लेकर काम करने वाले कई लोग हैं, इसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने कामकाज से समय निकालकर इस नेक कार्य को करते हैं। ऐसी ही एक बेटी कुल्लू जिले की भी है, जो एक स्टाफ नर्स है और अपने काम से समय निकालकर वह कुल्लू में झुग्गी-झोपड़ी में ज्ञान की ज्योति जगा रही है। जीवन में यह एक लक्ष्य बनाकर गरीब व जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित कर समाज का अहम हिस्सा बनाने में लगी निशा लोगों के लिए प्रेरणा बन रही है। हालांकि, झुग्गियों में शिक्षा का सपना देखना आज भी एक चुनौती है, लेकिन यदि इसी निशा की तरह लोग इन बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने के लिए प्रयासरत रहेंगे, तो एक न एक दिन यह सपना जरूर पूरा होगा। सनद रहे कि आज भी झुग्गियों के बच्चे शिक्षा के अपने अधिकार व शिक्षा से वंचित हैं। पारिवारिक समस्याओं, आर्थिक तंगी और स्वास्थ्य कारणों के चलते कई बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। ऐसे में इन बच्चों को शिक्षित करने और उनमें शिक्षा का महत्व जगाने का कार्य निशा ठाकुर कर रही हैं। उनका यह प्रयास न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने वाला है। लिहाजा, निशा के प्रयासों से स्लम बस्तियों में शिक्षा से वंचित बच्चे आज शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। निशा पेशे से नर्स है और पार्ट-टाइम काम करती है। साथ ही वे अपने आगामी एग्जाम्स की तैयारी भी कर रही हैं।
सोसायटी कर रही सहयोग
निशा के इस नेक कार्य में कुल्लू की ह्यूमन वेलफेयर सोसायटी उनकी मदद कर रही है। यह सोसायटी बच्चों को किताबें, कॉपियां और कपड़े प्रदान करती है। इन संसाधनों की उपलब्धता से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ती है। नई पेंसिल, कॉपी, और किताबें बच्चों के लिए न केवल पढ़ाई का माध्यम हैं, बल्कि उनके जीवन में खुशी और उ्मीद की एक नई किरण भी हैं।
युवा पीढ़ी को प्रेरणा
निशा का मानना है कि अगर हर युवा अपने समय का कुछ हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगाए, तो समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उनका यह संदेश हर उस व्यक्ति के लिए है, जो समाज में सुधार लाने की इच्छा रखता है। उनका यह प्रयास दिखाता है कि छोटे-छोटे कदम भी बड़ी सकारात्मकता ला सकते हैं।
नर्सिंग प्रोफेशन में रहकर आई सेवा की भावना
बकौल निशा सेवा की भावना उनमें नर्सिंग प्रोफेशन में रहकर आई और इसी भावना के चलते वह इन बच्चों के साथ समय बिताने और इन्हें पढ़ाने पिछले चार साल से हर रोज आती हैं। निशा हर दिन अपने व्यस्त कार्यक्रम से डेढ़ घंटा इन बच्चों को पढ़ाने के लिए निकालती हैं। उनका मानना है कि शिक्षा एक ऐसा साधन है जो बच्चों को गरीबी और अज्ञानता से बाहर निकाल सकता है।
खुले आसमान के नीचे लगती क्लास
निशा की क्लास खुले आसमान के नीचे लगती है। कुल्लू बस अड्डे के समीप बनी झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के पास पढ़ाई के लिए कोई स्थायी जगह नहीं है। शुरुआत में उनकी क्लास में करीब 40 बच्चे आते थे। हालांकि, समय के साथ यह संख्या घटकर 18 रह गई। इन 18 बच्चों में फस्र्ट क्लास से लेकर दसवीं तक के बच्चे हैं, जिनमें तीन बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते और यहीं पढ़ाई का पहला कदम रखते हैं। अक्षर लिखने और पढऩे का ज्ञान प्राप्त करने वाले ये बच्चे निशा की मेहनत और समर्पण का परिणाम हैं।