धागे को मनके में पिरोकर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
धागे और मनकों से माला बनाने वाली महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रही हैं। कुल्लू जिले के भागा सिद्ध स्वयं सहायता समूह गांधीनगर की महिलाएं कृत्रिम आभूषण बनाकर अपने भविष्य को संवार रहीं हैं। यह कला जहां उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद कर रही है वहीं, उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा रही है। इस पहल के माध्यम से महिलाएं न केवल अपनी आजीविका चलाती हैं बल्कि समाज में भी बदलाव लाने में सक्षम हैं। शहरी आजीविका मिशन के तहत भागा सिद्ध स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कृत्रिम आभूषण बना रही हैं और घर बैठकर अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन करते हुए अपने घर के खर्च भी पूरे कर रही हैं। समूह की प्रधान रीना बोध के अनुसार सबसे पहले उन्हें स्टार्टअप फंड के तौर पर 10,000 रुपए बैंक से मिले, उसके बाद उन्होंने 2 लाख रुपए का ऋण 4 प्रतिशत ब्याज दर पर मिला। भागा सिद्ध स्वयं सहायता समूह ने ऋण लेकर अपना काम बहुत अच्छे से आगे बढ़ाया है। यही नहीं जिन चीजों की उन्हें अपने काम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी, वे सारी वस्तुएं खरीद कर समय पर ऋण चुकता भी कर दिया। उसके बाद एक बार फिर शहरी आजीविका मिशन के तहत 3 लाख रुपए ऋण भी उन्हें 4 प्रतिशत ब्याज दर मिला।
घर बैठे हर माह कमा रहीं 4 से 5 हजार रुपए
बकौल ग्रुप प्रधान रीना बोध शहरी आजीविका मिशन के तहत वह घर पर ही कृत्रिम आभूषण बनाने का काम कर रही हैं। उनके समूह में 6 महिलाएं हैं और हर महिला हर माह 4 से 5 हजार रुपए घर बैठकर ही कमा रही हैं।
100 से 10 हजार रुपए तक के हैं उत्पाद
रीना बोध के अनुसार वह तैयार किए हुए कृत्रिम आभूषण ऑनलाइन, ऑफलाइन और स्थानीय मेलों, प्रदर्शनी में बेचते हैं। वह अपने उत्पाद 100 से 10,000 रुपए तक की कीमत पर बेचती हैं।
स्थानीय लड़कियों को उपलब्ध करवा रही रोजगार
रीना ने बताया कि वह अपने समूह की महिलाओं के अलावा स्थानीय लड़कियों को भी रोजगार प्रदान कर रही हैं। भागा सिद्ध स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कृत्रिम आभूषणों में झुमके, मालाएं, कान की बालियां इत्यादि शृंगार का सामान तैया करती हैं और ये आभूषण राज्य में ही नहीं पूरे देशभर में बहुत पसंद किए जा रहे हैं।