छावनियों के स्थानीय निकाय में विलय पर नियम-शर्तों का पेंच
आजादी के 78 साल बाद भी ब्रिटिश शासन के समय बने कानून की बंदिश से जमीन का मालिकाना हक से वंचित देश की 61 छावनियों सहित प्रदेश की 6 छावनियों में रह रहे लोग अभी भी केंद्र सरकार से राहत मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। रक्षा मंत्रालय ने 36 छावनियों को सिविल एरिया में शामिल करने का निर्णय लिया है, लेकिन नियम और शर्तों में बदलाव किए जाने से विलय का प्रस्ताव अधर में है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से नियम और शर्तों में बदलाव कर विलय की स्थिति में छावनी के लोगों को भवन का मालिकाना हक तो मिलेगा पर जमीन का अधिकार नहीं रहेगा। इससे सोलन जिले के तहत आने वाली कसौली सुबाथू और डगशाई के छावनीवासी निराश हैं। हालांकि, प्रदेश सरकार ने स्थानीय लोगों को निकाय में विलय के साथ जमीन का मालिकाना हक देने के लिए रक्षा मंत्रालय को लिखा है, लेकिन जवाब आना अभी बाकी है। छावनी के सिविल क्षेत्रों को स्थानीय निकाय में विलय करने की प्रक्रिया अंतिम चरण होने के बावजूद रक्षा मंत्रालय के तकनीकी निर्णय से हर छावनीवासी के जमीन के मालिकाना हक का सपना टूट गया। डिफेंस सचिव के साथ हुई व्यापक स्तर की मीटिंग के मिनिट्स में सामने आया कि छावनियों के सिविल क्षेत्र स्थानीय निकाय में मर्ज तो होंगे, लेकिन जमीन का मालिकाना हक भारत सरकार के पास ही रहेगा। मीटिंग में स्पष्ट किया गया कि सिविल क्षेत्र को दी जाने वाली सुविधाओं के लिए निर्मित संपत्तियां स्थानीय निकाय में बिना शुल्क हस्तांतरित कर दी जाएंगी। छावनी की सारी संपत्तियां और दायित्व भी राज्य के स्थानीय निकाय को हस्तांतरित कर दी जाएगी। संपूर्ण नागरिक क्षेत्र राज्य के स्थानीय निकाय को सौंप दिए जाएंगे, लेकिन जहां कहीं भी भूमि पर भारत सरकार का स्वामित्व अधिकार है, उस पर भारत सरकार का ही कंट्रोल रहेगा। प्रदेश में कुल सात छावनी हैं, जिसमें डलहौजी, सबाथू, डगशाई, कसौली, बकलोह, जतोग और खास योल। खास योल को छोड़कर अन्य छावनी के नागरिक क्षेत्रों को अभी तक विमुक्त नहीं किया गया है। पहले हुई बैकों केंद्र ने शर्त रखी थी कि राज्य सरकार उन लोगों को जमीन का मालिकाना हक दे सकती है जो उस जमीन पर स्थापित हैं। बशर्तें जमीन से होने वाली कमाई का 30-35 फीसदी केंद्र सरकार को देना होगा। चर्चा है कि मंत्रालय और कैंट बोर्ड में बैठी लॉबी जानबूझकर पेंच डाल रही है।