जीवन के प्रत्येक भाव को ईश्वर को करें समर्पित : श्री हरि महाराज
ब्राह्मण सभा सुंदरनगर के सौजन्य से बीएसएल कालोनी स्थित श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में आयोजित की जा रही श्री मदभागवद कथा के दौरान आचार्य श्री हरि महाराज ने प्रभु महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि हमें अपने जीवन के प्रत्येक भाव को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देना चाहिए ताकि जीवन में मोक्ष मिल सके । उन्होंने कहा कि उस संपति को संपति नहीं कहते जिसमें प्रभु का सुमिरन न हो। प्रभु नाम की संपति ही मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। ऊंचा पद तो किसी को भी मिल सकता है लेकिन आप उसे कब तक स्थिर रख पाते हैं यह आपकी योग्यता पर निर्भर करता है। परंतु यदि आप उस पद पर रहते हुए प्रभु को नहीं भूलते हो तभी आपका उस पद पर रहना सार्थक है। कथा प्रसंग का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य जिस योनि में जाता हैं उसी योनि में उसे सुख मिलने लग जाता है। संसार का सबसे बड़ा सच मृत्यु है। लेकिन न तो मनुष्य मृत्यु को याद रखता हैं और न ही प्रभु को याद करता है। मृत्यु का ज्ञान न होने के कारण ही मनुष्य पाप पर पाप किए जा रहा है। विपत्ति पड़ने पर ही व्यक्ति को प्रभु की याद आती है, परंतु बिना विपत्ति के यदि प्रभु को याद किया जाए तो विपत्ति ही नहीं पड़ेगी। जिस धन का प्रयोग धर्म के कार्य में नहीं होता है वह धन मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है इसलिए मनुष्य को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा धर्म के कार्यों में अवश्य खर्च करना चाहिए। जैसा हम अन्न खाते हैं वैसी ही बुद्धि पाते हैं। बुद्धि बिगड़ गई तो चरित्र को खराब कर देती है और यदि चरित्र ही खराब हो जाए तो सबकुछ समाप्त हो जाता है। इसलिए हमेशा पवित्र भोजन ग्रहण करना चाहिए। उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजो कर रखने का आह्वान किया।