स्कीन टाइम बच्चों में बढ़ा रहा दूर दृष्टि दोष (मायोपिया) व अन्य आंखों की बीमारियां: डा० संदीप महाजन
स्मार्ट फोन व अनलिमिटिड इंन्टरनेट डेटा प्लान के चलते स्कीन टाइम बच्चों व सब लोगों में अत्यधिक बढ़ गया है। 21 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों में (screen vision) सिन्ड्रोम नामक आंखों की बीमारी होती है। जिसके लक्षण ड्राई आई का होना यानि आंखों की बहुमूल्य आंसुओं की परत (टियर फिल्म) का ठीक से न बनने से आंखों में खुजली का होना, या बार बार भपकना, मलना, आंखों के आसपास दर्द का होना, फैश महसूस न करना इत्यदि । अपने आप में ड्राई आई एक समस्या है जिसका इलाज आई ड्राप्स द्वारा कुछ दिनों या महीनों के लिए किया जा सकता है परन्तु हमेशा के लिए नहीं। उसका समाधान केवल स्कीन टाइम को कम करना और बार बार आंखों का व्यायाम करना है। जिसके बारे में डा० संदीप महाजन पिछले 20 वर्षों से जनता को अनेक बार बताते आ रहे है, और आज भी सजग कर रहे है। लेकिन बच्चों में बढती आंखों की बीमारियों से अत्यन्त चिन्तित है। विभिन्न आंखों के अस्पतालों में बच्चे मायोपिया के दोष से ग्रस्त आ रहे है। पहले बच्चों में माइन्स 1 से 2 नम्बर से चश्मे शुरू में लगते थे और 6 से 7 नम्बर तक 20 से 21 वर्ष की आयु तक बढ़ते थे। 99 प्रतिशत मायोपिया से ग्रस्त बच्चों के चश्में के नम्बर माइनस 1 से 6 या 7 नम्बर तक होते थे, यह पिछले 40 वर्षों का अनुभव आंखों के विशेषज्ञों के एकत्रित डेटा में है। पर पिछले दशक से जब से screen time अत्यधिक बढ़ने के कारण (पढी डेटा व अनेक एप्स स्मार्ट फोन में होने के कारण), अब बच्चों में माइनस नम्बर 15,20 और कुछ में तो माइनस 20 से भी उपर के नम्बर के चश्मों की जरूरत पड़ रही है। इन बच्चों के आंखों के पर्दै अत्यधिक कमजोर हो जाते है और यदि उनकी नियमित जांच व इलाज न करवाया जाए तो अन्धापन भी हो सकता है। अत्याधुनिक उपकरणों और उच्च डिग्रीयां हासिल किए हुए आंखों के विशेषज्ञ इन बीमारियों का इलाज कर सकते है। इन जटिल बीमारियों को होने से रोका जा सकता है, यदि बच्चों का बचपन वैसा ही हो जैसा 20-30 वर्ष पहले होता था, यानि आउटडोर खेलकूद, मां के हाथों का बना घर का खाना व आंखों का नजदीक के काम के लिए जैसे कुछ देर किताबों में पढ़ना इत्यादि का इस्तेमाल करना। आंखों की डबलपमैट पैदा होने से लेकर व्यस्क होने तक होती है। पहले 15 वर्ष यदि आखों का नजदीक के लिए अत्याधिक इस्तेमाल किया जाए जैसे ज्यादा स्कीन टाइम तो दृष्टिदोष के होने की सम्भावना बहुत ज्यादा हो जाती है। विकसित देश जैसे जापान व दक्षिण कोरिया, चीन इत्यादि के 80 से 85 प्रतिशत बच्चों में यह दोष पाया गया है। हमारे देश में भी यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके इलावा सफेद मोतिया की बीमारी बच्चों में बहुत बढ़ रही है जिसका कारण ज्यादा स्कीन टाइम के इलावा फास्ट फूड का सेवन व अत्याधिक आई ड्राप्स का इस्तेमाल करना है। S.M आंखों के अस्पताल में प्रतिवर्ष 15 वर्ष से 40 वर्ष के आयु के लोगो में सफेद मोतिए के आप्रेशन किए जा रहे है। यह बीमारी आमतौर पर 60 वर्ष की आयु के उपरान्त होती थी पर अब बच्चों में और नौजवानों में पाई जा रही है। उसी तरह जिस प्रकार से हाई ब्लड प्रैशर, डायब्टीज व थायराइड की बीमारियां युवाओं में अत्याधिक देखने को मिल रही है। यह सब लाइफ स्टाइल रिलेटड बीमारियां है यानि प्रकृति से दूर रह कर अप्राकृतिक रहने सहने, खानपान और टैक्नोलॉजी पर अत्याधिक निर्भरता इनका कारण बन रही है। डा० संदीप महाजन के अनुसार कोई भी व्यक्ति चश्मा लगाने पर डॉक्टर, इंजीनियर, उच्च बिज़नेस मैन, राजनितिज्ञ बन सकता है, यहां तक कि देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन देश पर जान न्योछावर करने वाला वीर सिपाही या फाइटर पाइलट नहीं बन सकता है। अतः हमे अपने बच्चों की आंखों को दोष मुक्त करने के लिए और भयानक बीमारियों से बचाने के लिए हम सब को, सरकारों को, व स्वंयसेवी संस्थाओं को मिलकर स्कीन टाइम को कैसे कम किया जाए पर निर्णय लेने होगें। ऑनलाइन पढ़ाई को रोकना होगा और किताबों का पढ़ाई के लिए इस्तेमाल करना होगा। घरों में स्मार्ट फोन को न यूज करने के उपवास आए दिन रखने पड़ेंगें। बच्चों को ऑनलाइन गेम्स के लिए सप्ताह में केवल शनिवार को 1 से 2 घण्टे के लिए इस्तेमाल करने का प्रावधान होना चाहिए यानि गेम्स एप्स को इस तरह के लाइसेंस नियमित समय के लिए ही उपलब्ध हों।