सालवाला के नाग देवता का प्राचीन मन्दिर
सिरमौर ज़िला के गिरिपार आंजभौज क्षेत्र के मुहाने पर बसे पुरुवाला-सालवाला में नाग देवता का मन्दिर स्थित है। पुराणों में नागों के आठ कुलों का वर्णन मिलता है जिनके नाम -वासुकी, तक्षक,कुलक, कर्कोटक,पद्म, शंख, चूड़, महापद्म तथा धनन्जय।यह मन्दिर तक्षक नाग देवता का है जो भगवान शिव को अति प्रिय है। इसीलिए कालसर्प योग में जन्मे जातकों के लिए इस मंदिर में की गई पूजा विशेष फलदाई होती है। इस मंदिर का इतिहास अतिप्राचीन है यह सातवीं आठवीं शताब्दी का माना जाता है। नटनी के शाप/प्राकृतिक आपदा के समय सिरमौर रियासत की राजधानी सिरमौरी ताल के ग़र्क हो जानें के समय में भी इस मंदिर का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ था। यहां के राजा मदन सिंह यदुवंशियों के भाटी शाखा से सम्बन्ध रखते थे। इस वंश का राज सम्पूर्ण पंजाब में था तथा राजधानी भटिंडा थी इस वंश के शासक गज थे जिन्होंने गजनी बसाई थी।राजा गज का पहला मुस्लिम युद्ध खलिफाओं के साथ हुआ था। नटनी के शाप अथवा प्राकृतिक आपदा से ग़र्क हुए सिरमौर रियासत के लिए नया शासक लेने के लिए हुसांक नामक ब्राह्मण के साथ एक प्रतिनिधिमंडल जैसलमेर गया। जैसलमेर में उस समय राजपूतों का बाहुल्य था। वहां से शालीवाहन द्वितीय के सबसे छोटे बेटे हासु/हंसु को सिरमौर रियासत भेजा गया। यह 1195 ईस्वी की घटना बताई गई है जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह घटना 1095 ईस्वी की है। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक -ऐनल एण्ड ऐन्टी कबीली आफ राजस्थान में इस घटना की पुष्टि करते हुए लिखते हैं कि यह घटना बारहवीं शताब्दी में घटित हुई जिसमें प्राकृतिक आपदा से सिरमौरी ताल के ग़र्क हो जानें बारे बताया है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब हंसु/हासु सिरमौर पहुंचा तो काफी राणे तथा ठाकुर सिरमौर रियासत से अलग हो गए थे।राजबन पर भी कोली वंश का शासन हो गया था।राजा हंसु/हासु ने उन्हें राणों तथा ठाकुरों को युद्ध में परास्त किया जबकि कोली वंश के शासक को उसी क्षेत्र में बसा दिया।राजा हंसु/हासु जब दुबारा जैसलमेर से वापस आ रहा था तो हिसार के पास उसकी मृत्यु हो गई।उस राजा की रानी गर्भवती थी तथा वह अपने मायके में थीं। विचार करके उसे सिरमौर लाने का प्रबन्ध किया गया लेकिन जैसे ही वह रानी साल वाला जंगल के पास स्थित इस मंदिर में पहुंची तो उसे प्रसव पीड़ा हुई तथा उसने एक बालक को जन्म दिया जिसका नाम सुवंश प्रकाश(ढाक प्रकाश) रखा गया और यहीं बालक आगे चलकर सिरमौर रियासत का उत्तराधिकारी बना। ढाक वृक्ष के नीचे इसका जन्म हुआ तथा भयंकर बारिश में नाग देवता ने इसकी रक्षा की थी ।इसलिए आज भी नाग देवता को सिरमौर का राजपरिवार नाग को अपना पितर/देवता मानते हैं। किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले नाग देवता को निमंत्रण दिया जाता है। किसी भी प्रकार का नाग/सर्प सामने आने पर राज परिवार की महिलाऐ घुंघट कर लेती हैं। इस परिवार में सांप को मारना वर्जित है।नाग देवता की दिया जात स्वरूप उसी पलाश/ढाक की लकड़ी की चार प्रतिमाएं आज भी नाहन के परैत ब्राह्मण परिवार के पास मौजूद हैं। बड़ी पत्थर की प्रतिमा उसी साल वाला मन्दिर में स्थित है। कुछ समय बाद यह मन्दिर बाढ़ के कारण जमीन में धंस गया था जिसको स्थानीय लोगों द्वारा खोद कर निकाला था।