कन्याओँ की श्रद्धा का अप्रतिम त्योहार है ,श्री ममलेश्वर महादेव का "शलाणा की लाहौल"
भगवान शिवजी के अनेक नामों मेँ"सैँई"की तरह पार्वती जी के नामों मे एक नाम "लाहौला"भी है।लाहौल कौन थी? यह शोद्ध का विषय है। करसोग में बहुत से देवी देवता अपने क्षेत्र में इस मेले में भाग लेते हैं लेकिन मुख्यतः य़ह श्री ममलेश्वर महादेव और माँ कामक्षा में होता है। बता दें कि ममेल मे लाहौल का विवाह शिव पांच प्रविष्टि बैशाख को भ्याल बाईं मे शिव और पार्वती की मूर्तियों के विसर्जन के बाद लाहौला के सम्मान मे आयोजित लाहौल मेले के साथ कन्याओँ की श्रद्धा के इस अप्रतिम के त्योहार का भी समापन होता है। कन्याओँ की अराध्य लाहौल की दो सप्ताह तक ममलेशवर माहदेव मन्दिर मे प्रात:काल की पूजा अर्चना होने के बाद रात को विवाह पद्धति से कन्या दान होता है। वहीं वर पक्ष में बच्चों की बारात आती है।इस अवसर पर लाहौला मे कामाक्षा माता और श्री ममलेश्वर महादेव की शोभा यात्रा मुमेल से होकर भ्याल बाईं (बाबडी)तक होती है l जहाँ शाम के वक्त लाहौल मेले के आयोजन के बाद सभी देव रथ अपनी देवकोठियो की ओर लौटते हैं।भ्याल बाईं पर लाहौल मेला देवस्थल के चारों ओर फैलॆ अनुपम प्राकृतिक सौँदर्य और श्रद्धासिक्त वातावरण से श्रद्धालुओं को इस तीन घण्टे के मेले मे सुखद दिव्य अनुभूति से अभिभूत भी करता है। कन्याओँ के कारण आयोजित होने वाले इस लाहौल मेले मे देव मिलन और देवरथ नृत्य के माध्यम से देवी देवताओं के परँपरा सँरक्षण पर हर्ष व्यक्त होता है।मेले मे उमड़ी भीड़ देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त कर स्वँय धन्य होती है ।यह मेला शलाणा की लाहौल के नाम से प्रसिद्ध है।