प्रदेश में छह मेडिकल कॉलेज और बिलासपुर में एम्स होने के बावजूद मरीजों को जाना पड़ रहा दूसरे राज्यों के बड़े संस्थान
छह मेडिकल कॉलेज और एम्स होने के बावजूद मरीजों को उपचार के लिए दूसरे राज्यों के संस्थानों में जाना पड़ रहा है। इसका कारण प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों और आधारभूत ढांचे की कमी और चिकित्सकों का बाहरी राज्यों के अस्पतालों में पलायन भी है। ऐसे में मेडिकल कॉलेजों में सेवानिवृत्त डॉक्टरों की सेवाएं ली जा रही हैं। राज्य के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल काॅलेज (आईजीएमसी) शिमला में आधारभूत ढांचा विकसित होने के बाद भी मरीज यहां से पीजीआई रेफर हो रहे हैं। बड़ी बात यह है कि वीआईपी, राजनेता, बड़े अधिकारी भी हिमाचल के मेडिकल काॅलेजों में उपचार कराना उचित नहीं समझते और दूसरे राज्यों में इलाज करवाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति 1,000 लोगों पर एक डाॅक्टर होना चाहिए। हिमाचल में यह अनुपात प्रति 3,000 पर एक डॉक्टर है। प्रदेश में आईजीएमसी, टांडा, नेरचौक, हमीरपुर, चंबा और नाहन छह मेडिकल काॅलेज और शिमला के चम्याणा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल हैं। विशेषज्ञ डॉक्टर आईजीएमसी और टांडा मेडिकल काॅलेज में ही सेवाएं देना चाहते हैं। अन्य मेडिकल कॉलेजों में विशेषज्ञ डॉक्टर सेवाएं देने से कन्नी काटते हैं।